मुश्किलों की तोड़कर जंजीर

मुश्किलों की तोड़कर जंजीर

मुश्किलों की तोड़कर जंजीर निकलेगी
हौसलों से ही कोई तदबीर निकलेगी

बाजुओं पर ही भरोसा करके चलना है
बाजुओं से ही कभी तकदीर निकलेगी

किसने सोचा था कि जड़ हों पात्र सब जिसमें
ऐसी दुनिया की कोई तस्वीर निकलेगी

छेड़िए मत गाँव की दुखती रगों को यूँ
उसकी रग-रग में युगों की पीर निकलेगी

वह भले धनवान हो जाए मगर उसमें
लोभ के प्राचीर की तामीर निकलेगी

सच तो ये है जानते हैं जितना हम, उससे
देश की हालत कहीं गंभीर निकलेगी

वह कोई झरना नहीं रुक जाए रोके से
वह नदी है पर्वतों को चीर निकलेगी

एक शायर खुश है लफ्जों के खजाने से
और उसके घर से क्या जागीर निकलेगी

फर्क सर्दी का लहू पर पड़ नहीं सकता
गर्म है तो गर्म ही तासीर निकलेगी।


Image : Khakasy with his feet bound with chains
Image Source : WikiArt
Artist : Vasily Surikov
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