खामखा मखलूक पर बिगड़ा हुआ है

खामखा मखलूक पर बिगड़ा हुआ है

खामखा मखलूक पर बिगड़ा हुआ है
आजकल मेरे खुदा को क्या हुआ है

पूछ तो आखिर घड़ी को क्या हुआ है
क्यों समय का थोबड़ा उतरा हुआ है

खामुशी तन्हा रहा करती थी अक्सर
बाद-मुद्दत शोरो-गुल तन्हा हुआ है

कद्र पहले भी गरीबों की कहाँ थी
हाँ, पसीना और अब सस्ता हुआ है

हौसले के पाँव से काँटे हटाकर
मन हमारा आज कुछ हल्का हुआ है

चील, कौए, लोमड़ी, लीडर कहाँ हैं
मान लूँ कैसे, यहाँ दंगा हुआ है

बागबानो! कामयाबी हो मुबारक
हर चमन में कैक्टस पैदा हुआ है

कुछ नहीं बदला हुकूमत का तो आखिर
पेट क्यों बाहर तरफ निकला हुआ है

अब कभी खुलकर नहीं रोएँगी आँखें
आँसुओं से प्यार का सौदा हुआ है

माँगता है फूल के बदले वो काँटे
आदमी मेरी तरह खिसका हुआ है

सामने से ठीक है मेरा मुकद्दर
सिर्फ पीछे से जरा फूटा हुआ है।


Image : Head of a Kirghiz. Sketch
Image Source : WikiArt
Artist : Vasily Perov
Image in Public Domain

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