वे मुझसे ये कहते

वे मुझसे ये कहते

वे मुझसे ये कहते हैं
आप तो अब तक बच्चे हैं

हम तो बिल्कुल अच्छे हैं
आप बताएँ कैसे हैं

जितने लदे-फदे हैं हम
उतने ज्यादा टूटे हैं

राजनीति की मंडी में
सब पर खोटे सिक्के हैं

संडे को मत घर आना
घर पर पापा रहते हैं

बाहर खुले-खुले हैं हम
घर के भीतर पर्दे हैं

दो-दो पैग लगा लें चल
तुझ पर कितने पैसे हैं?

अब वादों से तौबा कर
हम मुश्किल से सँभले हैं

रजधानी की झोली में
अनगिन ख्वाब सुनहरे हैं

जो करना है जल्दी कर
घर में भूखे बच्चे हैं

कहता हूँ घर तो आओ
खुशियों के सौ नखरे हैं!


Image: Four Peasants at a Meal (Study for The Potato Eaters)
Image Source: WikiArt
Artist: Vincent van Gogh
Image in Public Domain