हमें पता है हम अपनी कमी समझते हैं

हमें पता है हम अपनी कमी समझते हैं

हमें पता है हम अपनी कमी समझते हैं
कमाने खाने ही को ज़िंदगी समझते हैं

हमारे पास जो दिल था निकाल फेंका है
किसी को इसकी ज़रूरत न थी समझते हैं

हमारी प्यास को दरिया कहाँ समझता है
हमारी प्यास को बस प्यासे ही समझते हैं

हमारे हक़ में ज़बाँ अपनी खोलता कैसे
हम उसका दर्द उसकी बेबसी समझते हैं

हमीं ने उनको फ़लक पर बिठाया है वरना
हदें ग़ुबारों की क्या हैं सभी समझते हैं

जो दौलतों के पुजारी हवस के हैं भूखे
ज़माने में वही नेकी बदी समझते हैं

घरों से अपने बिछड़ने पे किस तरह होंगे
मुहाजिरों को पता है वही समझते हैं।


Image : Family on the Barricades, 1848
Image Source : WikiArt
Artist : Honore Daumier
Image in Public Domain

प्रेम किरण द्वारा भी