तुम जिसे शाम या सहर कहते

तुम जिसे शाम या सहर कहते

तुम जिसे शाम या सहर कहते
हम उसे सिर्फ दोपहर कहते

बर्फ पिघली कि खुल गए रस्ते
मौसमी ही है ये असर कहते

देख लोगे धुआँ भी दरिया का
थम जरा आँख में ठहर, कहते

पेट से भूख पीठ में पहुँची
हम पहुँचने लगे शहर, कहते

धूप उनकी है, छाँह भी उनकी
हमको बस यूँ खड़े शजर कहते।


Image : Construction laborers receiving their breakfast
Image Source : WikiArt
Artist : Ferdinand Georg Waldmüller
Image in Public Domain

दिलीप दर्श द्वारा भी