दुनिया

दुनिया

दुनिया
ऐसे ही चलती है
सुन लो रामलला

नहीं बात पर
टिकने वाले
सभी वक्त के बंदे
गंगाजल से
कौन नहाये
कौन रह गए गंदे

फरक नहीं
पड़ता चाहे सिर
धुन लो रामलला

किसके मन में
क्या है चलता
बाहर क्या है दिखता
गीत-अगीत
न कोई गुनता,
मन आए जो लिखता

अकरम-बकरम
कर है छलता
गुन लो रामलला

घोषित है
सिद्धांत अनूठा
अंदर केवल तिकड़म
छले जा रहे
नीचेवाले
ऊपरवाले बम-बम

चाहो तो
तुम भी यह रस्ता
चुन लो रामलला।