कागा उचर रहा है

कागा उचर रहा है

कागा उचर रहा है, कोई आनेवाला है
मेरे मन को हरित-भरित कर जानेवाला है

मोबाइल के भी इस युग में कागा का इंगित
पोर-पोर में खुशियों को कर देता है अंकित
दर्द भरे दिल को कोई सहलाने वाला है

उत्कंठित हैं प्राण निछावर होने को उन पर
आग प्रेम की लहक उठी है, धुआँ-धुआँ होकर
उनसे मन तो आज बहुत बतियाने वाला है

कुछ पल का भी प्रेम, तृप्ति है अधिक-अधिक होती
एक अदद भी स्वाति-बूँद बन जाती है मोती
प्रेम आज मेरा खुलकर हरसाने वाला है।


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Artist : Frantisek Kupka
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