तीन रंग का ध्वज

तीन रंग का ध्वज

तीन रंग का ध्वज फहराता
भारत लेकिन है सतरंगा
हम विषपायी इसीलिए हैं
क्योंकि हमारी माँ है गंगा।

धरती भारत, नभ भारत है
भारतीय इतिहास हमारा
कश्यप-मनु की संतानों से
है आबाद जगत यह सारा
सदियों उँगली पकड़ सभी को
ज्ञान दिया, विज्ञान सिखाया
राहु-केतु से ग्रसा सूर्य जब
अंधकार ने जग भरमाया

अस्तंगत इंडिया दास है
भारत उदित हो रहा स्वामी
किया समर्पित पीकदान को
पश्चिम का विचार बेढंगा।

भारत रोज महाभारत में
रामायण का पाठ पढ़ाता
भारत यज्ञभूमि वेदों की
सुर की गाथा सुर में गाता
दुनिया के बुझ गए दीये सब
भारत जलता दीप अकेला
एक यहूदी छोड़ और किसने
इतना है संकट झेला

कुछ हैं लोग दुष्ट शरणागत
सागर लेता धैर्य परीक्षा
वरदहस्त की मुट्ठी तनती
देख जेहादी भूला दंगा।

दुनिया वालो, यह मत भूलो
स्वर्णिम कलश बने तुम तब हो
जब हमने आधारशिला बन
सत्य धर्म का मंदिर थामा।
हमने धरती बनकर तुमको
इतना बड़ा गगन दे डाला
तुमको दिया कृष्ण का दरजा
अपने हम रह गए सुदामा

घास-फूस की राममड़ैया
मुट्ठीभर अनाज के दाने
सबकी खैर मनानेवाला
देश हमारा है अधनंगा।