आइना देखकर गुदगुदी बढ़ गयी

आइना देखकर गुदगुदी बढ़ गयी

आइना देखकर गुदगुदी बढ़ गई
हौसले की उमर इक सदी बढ़ गई

पांडवों बीच सहती रही यातना
कृष्ण आगे बढ़े, द्रोपदी बढ़ गई

जान्ह्वी को मनाए भगीरथ कभी
पावनी बनके गंगा–नदी बढ़ गई

बात होती रही दिल्लगी की मगर
ग़फ़लतों में हवा, शरहदी हो गई

रूठने की अदा में पुकारा हमें
और उम्मीद सौ फ़ीसदी बढ़ गई।