बेबस दिन और बोझिल रातें

बेबस दिन और बोझिल रातें

बेबस दिन और बोझिल रातें
गीत ग़ज़ल हैं दिल की बातें

मिसरा पूरा करने को हम
जागे कितनी तन्हा रातें

अब भी तपता है मन मेरा
लौट गईं कितनी बरसातें

यूँ ही नहीं बना मैं शायर
मैंने बहुत सही हैं बातें

रखी हुई हैं ‘बंधु’ अब तक
उसकी दी सारी सौग़ाते।


अविनाश बंधु द्वारा भी