कनकनी से राजधानी त्रस्त

कनकनी से राजधानी त्रस्त

कनकनी से राजधानी त्रस्त की ख़बरें छपीं
चाँद सूरज हो गए अब, अस्त की ख़बरें छपीं

जब से जादूगर गिनाया जागने के फ़ायदे
तब से लाखों लोग लकवाग्रस्त की ख़बरें छपीं

चार ईंटें जोड़ने में ख़ून पानी तब हुआ
चंद नालायक किए जब ध्वस्त ख़बरें छपीं

रोड चौड़ी हो गई हैं गाड़ियों के वास्ते
जाम से, मुक्ति से बदले पस्त ख़बरें छपीं

शोहरत थोड़ी मिली तो बाप को पागल कहे
और जब छापे पड़े तो दस्त की ख़बरें छपीं।