लोगों से मैने कोई भी शिकवा नहीं किया

लोगों से मैने कोई भी शिकवा नहीं किया

लोगों से मैंने कोई भी शिकवा नहीं किया
जो भी है सामने है दिखावा नहीं किया

माना कि कोई दोस्त हमारा ना हो सका
हमने भी दुश्मनी में गुज़ारा नहीं किया

ख्वाबों की फ़िक्र में हैं ज़माने के लोग सब
ऐसे भरम पे हमने भरोसा नहीं किया

फ़ाक़ाकशी के दौर से गुज़रे कभी मगर
लेकिन किसी अमीर का सजदा नहीं किया

टूटे हरेक ख्वाब जो ‘बंधु’ को है मिले
उन ख्वाबों पे कभी भी भरोसा नहीं किया।


अविनाश बंधु द्वारा भी