पूरी तरह खड़ा हूँ मैं इस ज़िंदगी के साथ

पूरी तरह खड़ा हूँ मैं इस ज़िंदगी के साथ

पूरी तरह खड़ा हूँ मैं इस ज़िंदगी के साथ
कीजे क़बूल मुझको मेरी बेबसी के साथ

सहरा में घर बना के कहाँ चैन से हूँ मैं
करने लगी मज़ाक़ हवा रोशनी के साथ

मैं भी बहुत अजीब हूँ दुनिया भी है अजीब
धोखे हज़ार है यहाँ हर आदमी के साथ

चैन-ओ-क़रार ले गई वहशत की ये हवा
आ कर खड़ा हूँ सामने दीवानगी के साथ

होंठों के इस कुसूर का अंजाम ये हुआ
पहुँचा हूँ समंदर पे अजब तिश्नगी के साथ।


अविनाश बंधु द्वारा भी