दृष्टि

दृष्टि

अभी अभी तो डाली थी
भावनाओं के आँगन में
भरोसे की नींव!
देखने लगी थी आजादी के सपने
सघन भीड़ में तुम लगे थे अपने
तुमने भी तो कोताही नहीं की
संबल बने/भरने लगे
शब्दों की ऊर्जा से/मेरी गोद
बाधाओं से अंजान मैं उड़ने लगी
दूर बहुत दूर/कुछ तालियाँ कुछ दाद
आए मेरी झोली में कि
बदलने लगी रिश्तों की परिभाषा।

तुम्हें शब्दों से खेलते देख
चुप रहा नहीं गया!
सुनो! अब तो छोड़ दो
खेलना शब्दों से
वक्त का आईना देखो
सत्य को पहचानो
केवल शब्दों को ही नहीं
बदल दो अपनी दृष्टि भी।


Image : Solitude
Image Source : WikiArt
Artist :Harriet Backer
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