आख़िरी पड़ाव

आख़िरी पड़ाव

मेरे नाविक चलो वहाँ अब
जहाँ नहीं हो कोई अपना,
पर रुकना उस तट पर ही तुम
जहाँ खड़ा हो मरुभूमि में
एकवृत्त ही केवल
और छाँह में जिसके रुकता
एक बटोही दूर देश का ही केवल,

फिर तुम रुकना मेरे नाविक
चट्टानों की बस्ती के
ऊँचे पहाड़ के आँगन,
जहाँ हवा भी दबे पाँव आ
घिरी शाम के प्रेत जगत में
चुपके-चुपके कह जाती हो
अँधियारे की बातें,

फिर नाविक तुम चलना आगे
सागर के उठ रहे ज्वार पर
बिना पाल के ले जाए जो
क्षितिज लोक के वातायन के आगे।


Image name: The Boat Studio
Image Source: WikiArt
Artist: Claude Monet
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