फकीर हवा

फकीर हवा

मुट्ठी से सरक गई यूँ धूप
गर्म हवा मानो मिट्टी से नीम चुरा गई
छिटकी रोशनी को सँभालते-सँभालते
शाम वे कयामत सी आ रही।

किरणें साथ अब छटा बता रहीं
रोशनी वजह तो बने
ढूँढ़ने निकले सब जुगनुओं को
कहाँ होगा उनका बसेरा
बेचैन निगाहों में
कयास की शामत आ रही

शफ्फाक आसमाँ में
धुएँ की लहर उठ रही
खामोश हैं सब
धुँध कैसी अजब छा रही
सींचना होगा सूरज को भी
सोच अब हर मन समा रही

जाने किधर हो
रहबर का ठिकाना
परती उस मैदान में
सहर से शाम तक
फकीर हवा तन्हा ही
एक मन तिनके जुटा रही!


Image name: Evening
Image Source: WikiArt
Artist: Arkhyp Kuindzhi
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