मुक्तिपर्व

मुक्तिपर्व

मैं साँस लूँ उन्मुक्त सी
मैं सुगंध बहूँ बेफ़िक्र सी
मैं विशाल सागर असीम पर
बह सकूँ वादियों में निस्सिम सी
मैं बाँसुरी का राग हूँ
मैं मन की वो आवाज़ हूँ
सुबह की पाक ओस सी
मैं चाँदनी-सी साफ़ हूँ

जब मिलेगा वो परवरदिगार
मेरी पेशानी पाक-साफ़ हो
ये दर्द दुख सब माफ़ है
मेरे दिल की ये आवाज़ हो
देह में जब बज उठे
जलतरंग साँस-साँस का
फूल सा विलग हो वो
आत्म परम के साथ सा
मैं हवा से हल्की उड़ सकूँ
मैं बादलों के पार हूँ
इन्द्रधनुष के रंग सी
मैं श्वेत पावन विचार हूँ

मैं मुक्त थी, मैं मुक्त हूँ
मैं मुक्ति का त्योहार हूँ
जो गा सके वो राग हूँ
मैं मोक्ष का मल्हार हूँ…!


Image name: Moonlight Sonata
Image Source: WikiArt
Artist: Wilhelm Kotarbinski
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