वसंत में

वसंत में

फिरी है रंगरेजी कलम
धरा रियाज कर रही सप्तक सरगम
क्योंकि वसंत है!

भिनसरे हवा ओढ़ती फिरती
चारू कमनीय चादर
क्योंकि वसंत है!
इस इश्किया सुगबुगाहट में
दोपहरी कैसी शिकायत
लिए खड़ी है
विलग गगन ओढ़े
क्योंकि अनमनी पड़ी है
रूह दिखती
कुछ बेचैन विगलित
थोड़ी अनगढ़ अपठित
सूनेपन की गहरी चुभन लेकर
पतझड़ सी दुशाला ओढ़कर
भरी दोपहरी
वसंत क्यों उचाट पड़ा है
कोयल की कूक में
पपीहे की हूक में
ये कौन-सा महीना
आ चढ़ा है!

वसंत है
हवा में फिर गमगीनी क्यों
सपाट दोपहर
अलसाई किरणें क्यों
वसंत है
फिजा में पर नमक नहीं
वसंत है
मदमाती पर दोपहर नहीं
दिन चढ़े
वसंत क्यों रीता पड़ा है
वसंत में
ये कौन-सा महीना
आ चढ़ा है!

 


Image name: Park at Asnieres in Spring
Image Source: WikiArt
Artist: Vincent van Gog
This image is in public domain