मीटर से

मीटर से

लाँघी है
अपरिमित दूरी
तुम माप नहीं
सकते मीटर से।

खुले गगन में
तौल-तौल के
फैलाये हैं डैने
लेकिन अंतर
रहा प्रवाहित
तट तोड़े हैं कितने
रही पपीहे-सी रट
हरदम
टूट गया भीतर से।

जहाँ-जहाँ मैं
गया लोभ वश
नहीं लौट कर आया
उलझ गया जीवन
साँसों में
बार-बार पछताया
अब तो प्यास
बुझानी होगी
अपने ही सीकर से।

सदा स्नेह-शृंगार
सजा
धरती का मुँह चमकाया
तिमिर भगाने
किरण-किरण बन
सूरज-सा धमकाया
खुश किश्मत हूँ
आज बुलावा
आया है पीहर से।


Image :Demosthenes Practicing Oratory
Image Source : WikiArt
Artist : Jean Lecomte du Nouÿ
Image in Public Domain