सुविधा की शैम्पेन

सुविधा की शैम्पेन

हम इतने आधुनिक
हो गए, अपना ही घर भूल गए,
डिस्को धुन के
आलिंगन में, ढाई आखर भूल गए।

शहरी राधा को गाँवों की
मुरली नहीं सुहाती है,
पीतांबर की जगह ‘जींस’ की
चंचल चाल लुभाती है।
सुविधा की
शैम्पन में खोकर,
रस की गागर भूल गए।

पंचसितारा हाटों में अब
खोटे सिक्के का शासन,
रोज जिस्म के बाजारों में
सौदा करता दुश्शासन।
हम फरेब के
तस्कर बनकर,
सच का तेवर भूल गए,

अर्थनग्न तन के उत्सव में
देखे कौन पिता की प्यास?
धनकुबेर बेटों की दादी
घर में काट रही वनवास।
नकली हीरो
के सौदागर,
माँ का जेवर भूल गए,
हम इतने आधुनिक
हो गए,
अपना ही घर भूल गए।


Image :Paris by Night
Image Source : WikiArt
Artist : Konstantin Korovin
Image in Public Domain