अभी थोड़ा जीना चाहता हूँ

अभी थोड़ा जीना चाहता हूँ

जिंदगी की किताब के पन्ने
अब थोड़े, बहुत थोड़े ही बचे हैं
आँधियों में फड़फड़ाते अक्षर…
काली विडंबनाओं से
विकटाकार!

नेपथ्य में कोई हँसा है बहुत जोर से
परदे हिलते हैं
अजब-सा डरावना
अट्टहास…!

मुझे दिखाई पड़ रहा है अंत
पर मैं अभी जीना चाहता हूँ
थोड़ा और जीना चाहता हूँ मेरे प्रभु!


Image :The Repentance of Saint Peter
Image Source : WikiArt
Artist : Johannes Moreelse
Image in Public Domain