एक बेढब कविता
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एक बेढब कविता
तुम रमेश तैलंग को याद करो
और रमेश तैलंग हाजिर
तुम रमेश तैलंग की बात करो
और फेंको हवा में
मुट्ठी भर शब्द
हवा में बनता रमेश तैलंग का चेहरा
साफ नजर आएगा
तुम किसी भोले यकीन के साथ
जमीन पर खींचो दो-चार लकीरें
रमेश तैलंग तुम्हारे पास
बहुत पास होगा
बतियाता…
गरमजोशी या कि शरारत से!
कभी-कभी चुप्पा भी…
किसी धीरजवान नायक की तरह
किसी प्राचीन पुराकथा के भीतर से
मुस्कराता मंद-मंद।
और कभी पाँच सी बटा छयालीस
नई रोहतक रोड पर
लंबी दाढ़ी वाले सत्यार्थी से
हँस-हँसकर बतियाता
ऐसा जिंदादिल शख्स भी
जिसके चेहरे पर तो नहीं
मगर बातों में लंबी दाढ़ी है…!
तुम याद करो रमेश तैलंग को
और रमेश तैलंग हाजिर
उस तरह धधाकर गले मिलता हुआ
कि जैसे कोई रमेश
तैलंग ही मिल सकता है आपसे
और बहुत दिनों की सूखी-रूखी सी
उदास आत्मा आपकी
एकाएक हरिया उठती है
आप रमेश तैलंग को
याद करो और रमेश तैलंग
आपके दिल के करीब
सबसे करीब होता है…!!