एक मटमैला ताबीज

एक मटमैला ताबीज

वह अधिक तो क्या, बोलता ही नहीं
इतना शांत और निर्विकार चेहरा देखा नहीं
यहाँ तक कि ग़रीब-गुरबों के दृश्य से अलग
उसकी आँखों के पपोटे
लटककर गाल तक आ गए हैं

बेतरतीब ऐड़ियाँ इतनी फटी जैसे
गर्मी में मालवा की काली धरती
बमुश्किल शरीर का किसी चोगे से ढाँपे हुए

उसका सीना दूर से ऐसा दीखता
जैसे पिघला हुआ इस्पात
वह इस मुल्क का तो नहीं ही है

मैं उसे निज़ामुद्दीन की दरगाह के आसपास
देखता हूँ काम की तलाश में
मैं पूछना चाहता हूँ भाई किस देश के हो

बस सीने पर पड़ा एक मटमैला
ताबीज है जैसे कुछ बुदबुदाता
वह कुछ भी बताने से
इतना झिझकता क्यूँ है?


Image : Poor old Greek Anatolia
Image Source : WikiArt
Artist : Arshak Fetvadjian
Image in Public Domain

लीलाधर मंडलोई द्वारा भी