अपने अपने यथार्थ

अपने अपने यथार्थ

बाबा! सितारे जमीं पर लाऊँगा
चाँद को खिलौना बनाऊँगा
आएँगी जब ठंड
सूरज पर हाथ सेकेंगे…

बाबा! आसमान की तख्ती पर
देवदार की लंबी कलम से
नदी के नीले जल की सियाही से
तुम्हारे जीवन-संघर्ष की गाथा लिखूँगा…
बेटा!
देखते हो खूँटी पर टँगा वह मैला कुरता
उसकी बाजू पर लगी हुई कई पैबंद
मेरे पायजामे पर पड़ी बेतरतीब सिलवटें
झुर्रियों से ग्लोब बने मेरे चेहरे को
और भीतर धँसी ये दो आँखें

पहचान कर लो अपने यथार्थ की
मैं थोड़े तिनके एकत्र कर लूँ
तुम अलाव के लिए आग
माँग लाओ पड़ोस से
फिर हम आलू भूनेंगे
जो मैंने चुराए हैं खुदे हुए खेत से
कल ही रात
और अपने हाथ सेकेंगे…।