आत्ममुग्धता से परे

आत्ममुग्धता से परे

बड़ी साफगोई है तुम्हारे कहन में
तुम शब्दों के उबाल में पकने
देती हो भावनाएँ
और उसके ताप में सृजित करती हो
असंख्य कविताएँ
तुम्हारे लिए कविता शब्दों का
जोड़-घटाव नहीं
भावों का उद्वेलन नहीं
भावों-विचारों का गूढ़ मंथन है
आध्यात्म का गहन चिंतन है
मौन का गंभीर उद्वेलन है।

तुम मौन में तराशती हो
शब्दों के लौह औजार
भावावेगों के सिरों को थाम
कल्पना और यथार्थ के संतुलन में
लिखती हो न जाने कितनी कहानियाँ
कहानियाँ तुम्हारे लिए
जीवन सत्य के अलावा
जीवन प्रेरणा है जिसके वशीभूत हो
द्रष्टा, भोक्ता और प्रस्तोता के
अनुभूत सत्य में
तुम सहेजती हो, भावी भविष्य की कड़ियाँ

तुम साहित्य की सच्ची साधना कर
तराशती हो लेखनी को
निखारती हो मानवीय मूल्यों से उसे
और तारीफ़ और आलोचना के बीच
करती हो आँकलन खुद के लेखन का
साहित्य की कसौटी पर

इस तरह नित नई विधाओं में
आत्ममुग्धता से परे
सृजनरत तुम कर रही हो मौलिक सृजन
भावी पीढ़ियों के भविष्य के खातिर।


Image: self portrait-1921
Image Source : WikiArt
Artist : Zinaida Serebriakova
Image in Public Domain