बादल राग
- 1 August, 2016
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https://nayidhara.in/kavya-dhara/hindi-poem-about-badal-rag-by-suryakant-tripathi-nirala/
- 1 August, 2016
बादल राग
झूम-झूम मृदु गरज-गरज घन-घोर
राग अमर, अंबर में भर निज रोर!
झर-झर निर्झर, गिरि, सर में
घर, मरु, तरु-मर्मर, सागर में
सरित, तड़ित गति, चकित पवन में
मन में, विजन गहन, कानन में
आनन-फानन में, रव घोर कठोर–
राग-अमर, अंबर में भर निज रोर!
अरे वर्ष के हर्ष!
बरस तू, बरस-बरस रस-धार!
पार ले चल तू मुझको
बहा, दिखा मुझको भी निज
गर्जन-भैरव संसार!
उथल-पुथल कर हृदय
मचा हलचल–
चल रे चल–
मेरे पागल बादल!
धँसता दलदल–
हँसता है नद खल-खल
बहता, कहता कुल-कुल कलकल-कलकल
देख देख नाचता हृदय
बहने को महा विकल-बेकल
इस मरोर से–इसी शोर से
सघन घोर गुरु गहन रोर से
मुझे गगन का दिखा सघन वह छोर
राग अमर, अंबर में भर निज रोर!
Image : Rainbow over Jenny Lake, Wyoming
Image Source : WikiArt
Artist :Albert Bierstadt
Image in Public Domain