बंधु! जरूरी है मुझको घर लौटना

बंधु! जरूरी है मुझको घर लौटना

बंधु! जरूरी है मुझको घर लौटना,
एक मुझे भी ले लो अपनी नाव पर।

देर तनिक हो गई वहाँ, बाजार में,
आइना था एक अनोखी आव का,
इंद्रजाल-सा था जिसके दीदार में;
मैं गरीब ले सका न अपने भाव पर।

बंधु! जरूरी है मुझको घर लौटना,
एक मुझे भी ले लो अपनी नाव पर।

देर तनिक हो गई वहीं, बाजार में,
मोल-तोल के भाव और व्यवहार में
आईना या एक अनोखी आव का,
इंद्रजाल-सा था जिसके दीदार में
मैं गरीब ले सका न अपने भाव पर।

सनक नहीं तो क्या कहिए, इस ठाट को…
कौड़ी लेकर साथ, चला था हाट को,
जहाँ प्रसाधन बिकते हैं शृंगार के!…
पड़ता रहा नमक ही मेरे घाव पर!

हल्का हूँ, कुछ खास न हूँगा भार मैं;
निर्धन हूँ, दे सकता हूँ, बस, प्यार मैं;

गीत सुनाऊँगा मीरा के, सूर के;
ले लेना, जो पाऊँगा दो-चार मैं;
कृपा करो अब, सिर धरता हूँ पाँव पर।


Image :River view with a boat Sun
Image Source : WikiArt
Artist : Piet Mondrian
Image in Public Domain