मन में संदूक

मन में संदूक

मैंने मन के कोने में
एक संदूक छिपा रखी है
दिन प्रतिदिन
होती जा रही है
यह और भी भारी
इसमें है कुछ शब्द
जो हर बार कहने पर भी
बात रह जाती है अधूरी

कुछ वाक्य विन्यास
जो बोलने के बाद भी
नहीं जाते हैं सुने

कुछ विशेषण
जिसमें देवत्व का गुण
देने से
नहीं समझा जाता
मुझे मनुष्य

कुछ संज्ञा
जिसमें मिटा दिया जाता है
मेरा नाम
राख कर दी जाती है
बुनियादी अस्मिता

कुछ अलंकार
जहाँ गहनों से सजाकर
दाब दिए जाते हैं
मेरे निर्णय

क्या हो सकूँगी
कभी मैं इसके
भार से मुक्त!


Image :Treasure Chest, c. 1937, NGA 16832
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Artist : Andrew Topolosky
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