चीजों की भीड़

चीजों की भीड़

नचिकेता के घर में
भीड़ जुटी है चीजों की

सारी-की-सारी चीजें उपयोगी लगती हैं
कुछ संयोगी लगती हैं, कुछ भोगी लगती हैं
कुछ में गूँजें घुली हुई हैं
उत्सव, तीजों की

देख-देखकर विज्ञापन ये गई खरीदी हैं
कुछ हैं बहुत जरूरी, ज्यादा उल्टी-सीधी हैं
सूरत साफ नहीं दिखती
आँगन-दहलीजों की

चीजें हैं, पर रिश्तों की गरमाहट गायब है
घर लगता घर नहीं,
बना घर आज अजायब है
गर्म हवा कहती है कथा
ऊब की, खीजों की

विश्वग्राम के नये रंग ने रंग दिखाए हैं
लगीं मचलने देह-राग पर शोख अदाएँ हैं
इसमें गुम
होती जाती पहचान अजीजों की।


नचिकेता द्वारा भी