सिगरेट

सिगरेट

जब पीना शुरू किया था तब लगता था
‘सिगरेट, सिगरेट के अलावा
सिर्फ आधे अँधेरों में खोजा जा सकता है’
जहाँ हम जीने को रोककर बातें करने लगते हैं
अपने से, अपनों से
वहीं हवा का सिरहाना बनाकर सो जाते हैं
ढाई मिनट के लिए
कंधे और सिर आराम पाते हैं
तब हाथ और पैर लटके रहते हैं
ज़मीन छूने को आतुर
जगने पर हम नहीं होते या नए होते हैं
जब प्रेम करना शुरू किया तब लगता था
लगने लगा
‘अब तक जो सिगरेट पी
वह अच्छी सिगरेट नहीं थी’
अच्छी सिगरेट सिगरेट के अलावा किसी
एक व्यक्ति के करीब खोजी जा सकती है
व्यक्ति के अदंर भी
इसकी लत अधिक खतरनाक होती है
अच्छी सिगरेट मिल/दिख सकती है
चलते उँगलियों में, कपड़ों की सिलवटों में
ठहरी उदास आँखों में
कभी झुके कभी उठे कंधों में
रूखी फड़कती होठों में भी
जो सबसे बढ़िया होती है
वहाँ गोद का सिरहाना बना कर
सो सकते हैं अंत तक
सपने में किसी अनजान भाषा का
संगीत बजता है
नाचती झूमती है हर एक कोशिका
उठने या जगने पर समय ख़त्म हो चुका होता है
चाँद और सूरज को अपने साथ लेकर
हम पसीने से लथपथ होते हैं
सहमे हुए भी।


Image : Self-Portrait with Burning Cigarette
Image Source : WikiArt
Artist : Edvard Munch
Image in Public Domain

प्रकाश साहू द्वारा भी