आश्वस्ति के बादल

आश्वस्ति के बादल

हे! प्रभु
या तो सृष्टि के बंधनों से मुक्ति दो
या निर्बल हाथों को शक्ति दो

नष्ट कर दिए गए हैं
आश्वस्ति के बादल
नहीं जाना उस राह मुझे
जहाँ है सिर्फ
अनुरक्ति के दलदल
मौन हूँ विच्छेद हूँ
सब रिश्तों से विभेद हूँ
समय ने तोड़ा
अपनो से झंझोड़ा-मोड़ा
फिर भी,
मैं सब से जुड़ी रही
तुम्हें मन ही मन गुनती रही

कठिन लक्ष्य डगर पर
ओ भाग्य विधाता!
तू ही बदल सकता है
जीवन पुष्प की आशा

जीवन के हर मोड़ पर
निश्चिताओं को रूप सकल दो
मेरे श्रम-साधना को अंतिम छोर दो

बहुत दे दी परीक्षा
बहुत ले ली तुमने परीक्षा
बहुत कर लिया जीवन संग्राम
बहुत अघोषित रहे मेरे परिणाम
अब तो दो मेरी वेदना को विराम दो
मेरे राम! मेरे विश्वास को विश्राम दो

तुमने तो कहा था
कर्म प्रधान विश्व रचि राखा
फिर, भाग्य को बड़ा कहूँ
या कर्म को दूँ बड़ा नाम
राम नाम लेकर ही
मैं दे रही हूँ
अपनी वाणी को अल्प-विराम।


Image : Rustic devotion
Image Source : WikiArt
Artist : William Henry Hunt
Image in Public Domain