भ्रम

भ्रम

अपने शहर में गुज़रते हुए मुझे
कविता के शहर से गुजरने का भ्रम होता है

बिंबों से सनी कच्ची-पक्की सड़क
मकानों से बाँहें जोड़े चलती है
हर गली सूक्तियों की एक रेखा लगती है
जिनके छोर छूता हुआ मैं घर को लौटता हूँ
सभी मोहल्ले, मोहल्लों के सभी घरों में
रदीफ़, काफ़िए की ईंटें जड़ी हैं
सभी के एक से नज़र आने का भ्रम होता है
पड़ोसी पन्नों की तरह नज़र आते हैं
मैं पड़ोसियों से पड़ोसियों की तरह मिलता हूँ
हम मुक्त छंद में बातें करते हैं
बात-बात पर दाद देते हैं
तालियों की हँसी हँसते हैं
और अलविदा में कहते हैं
कि अगली बार कुछ नया सुनाएँगे
हम आगे बढ़कर रास्ते बदलते हैं
जैसे पन्ने पलटते हैं, और कविता के अगले हिस्से में जाने का भ्रम होता है

एक छोटी नहर त्रिवेणी जैसी
जिसे मैं कदम भर में लाँघकर पढ़ सकता हूँ
दूर कहीं बहकर कहते हैं
किसी नदी में जाकर मिलती है
एक नदी महाकाव्य जैसी
जिसमें मूर्तियों के साथ कभी
मेरा भी विसर्जन हो, ऐसा मैं चाहता हूँ
ऐसी कई चाहतों में मेरी चाहत है
कि किसी सुबह, चलते रास्ते कोई
वर्ण-माला गले में डाले मिले, और कहे कि
मुझे भी कभी कवि होने का भ्रम होता है
बाज़ार धीरे धीरे खुलता है पंक्ति दर पंक्ति
कविताएँ धीरे धीरे खुलती हैं
पंक्ति दर पंक्ति
मैं पाठक की तरह दोनों जगह शामिल हूँ
कवि की तरह कहीं भी नहीं
मेरे शामिल होने में
बाज़ार का खुलना तय है
किस्सों का पकना तय है
लम्हों का बिकना तय है
दुकान दर दुकान जाकर
मुझे सब कुछ खरीद लेने का भ्रम होता है

शहर की आँधियों में
एक चिड़िया लड़ती है
उसका घोंसला
तिनका-तिनका हुआ जाता है
उसका शहर, शहर के पास का जंगल है
मेरी खिड़की से झाँकता बरगद,
उसका मोहल्ला, उसके लड़ने में
आँधी को आँधी होने का भ्रम है
चिड़िया को चिड़िया होने का कोई भ्रम नहीं
मुझे चिड़िया के कवि होने का भ्रम होता है।


Image : Street in Yalta
Image Source : WikiArt
Artist : Isaac Levitan
Image in Public Domain