जिरह

जिरह

खाई पाटी भी जा सकती है
चट्टान लाँघी भी जा सकती है
या अपनी ही तरफ़ बनाया जा सकता है
एक छोटा-सा घर
जहाँ हर ज़हनी बहस पहनी जाए
कुछ बहस आएँगी हमारे घर
और फिर वहीं रह जाएँगी
हर दूसरे दिन धोकर धूप में
डाली जाएँगी अलगनी पर
एक दिन हमारी बहसें पक जाएँगी
कुछ बहस पुरानी होंगी
कुछ उधड़ जाएँगी
कुछ पड़ जाएँगी हमारे कद के लिए छोटी
कुछ का रंग पड़ जाएगा फीका
कुछ हम फिर भी पहनेंगे क्योंकि आदत है
फिर एक दिन ऊबकर बनेंगे उनके पोंछे
उनसे अपनी ज़मीन घिसी जाएगी।


Image : House with Red Roof
Image Source : WikiArt
Artist : Georges Seurat
Image in Public Domain