दशरथ माँझी

दशरथ माँझी

दशरथ माँझी
पहाड़ से भी है ऊँचा
जिसे देखकर
पहाड़ के उड़ जाते हैं होश
दशरथ माँझी
सिर्फ तुम्हारा नाम ही है काफी
पहाड़ को थर्राने के लिए
क्योंकि तुम्हारे अंदर
बसी है फागुनी देवी
जैसे आगरे की
ताजमहल में मुमताज

तुम्हें तो अफसोस है
कि दवा के अभाव में
तुमने खो दिया है
अपनी प्राण-प्यारी को
वैसी प्राण-प्यारी को
जो तुम पर
हमेशा रहती थी न्यौछावर
शुरुआत में तो
तुम्हारे गाँव के लोगों ने भी
समझ लिया था तुम्हें पागल
कि यह पागल
हो जाएगा काल-कवलित
कुछ दिनों में पर
पहाड़ को एक दिन
हारना ही पड़ा
और होना पड़ा
तुम्हारे आगे नतमस्तक

पर गेलौर की
आनेवाली पीढ़ियाँ
तुझे याद रखेंगी
किस्से और कहानियों में
कि एक थे हमारे बाबा
जिन्होंने
पहाड़ को झुका दिया था
अपने चरणों पर
और किया था
उसके गर्व को चूर-चूर
तीन सौ साठ फीट लंबा
और तीस फीट चौड़ा
रास्ता बनाकर

दशरथ माँझी
अब भी पहाड़
तुझे सपने में देखकर
डर जाता है
और खड़े कर देता है
अपने हाथों को।


Image : Range of mountains, Mont Blanc
Image Source : WikiArt
Artist : Isaac Levitan
Image in Public Domain

नीलोत्पल रमेश द्वारा भी