दृष्टि पथ

दृष्टि पथ

शब्दों के बाजार में
बिकाऊ नहीं है मेरी कविताएँ
उनकी औकात छोटी ही सही
पर वे मेरे हृदय में उपजी मौलिक कृतियाँ हैं
इसलिए सँवरती, सहेजती हूँ उन्हें
एकदम नन्हे बच्चों-सा

देती हूँ उन्हें एक दृष्टि पथ
खुद तय करने देती हूँ अपना रास्ता
भटकाव की भीड़ में
नहीं बनने देती हूँ
आत्ममुग्धता का शिकार

ऐ मेरी छोटी-छोटी अनंत लघु कविताओ!
मेरे जीवन का प्राणपण सृजन
मेरे हथेली से तराशे गए नूर
चकाचौंध के बीच
तुम बनाएँ रखना अपनी गुणवत्ता
बिहारी के दोहों की मानिंद।


Image: mountainous landscape with village In valley and distant jan brueghel the elder
Image Source: WikiArt
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