मुसाफिर थक के जब प्यासा भी होगा

मुसाफिर थक के जब प्यासा भी होगा

मुसाफिर थक के जब प्यासा भी होगा
घने जंगल में इक दरिया भी होगा

कभी जब आएगी गलती समझ में
किए पर अपनी शर्मिंदा भी होगा

दुखों को आँसुओं में गर बहा दो
तो मन से बोझ कुछ हल्का भी होगा

सफर में आएँगी कुछ मुश्किलें भी
मगर उनसे ही कुछ रास्ता भी होगा

किए थे जुल्म जो उसने सभी पर
मरा होगा तो वो तड़पा भी होगा

न कर अफसोस अब जो हो गया है
मुकद्दर में यही लिक्खा भी होगा

फसाना है उसे गर जाल में तो
फिर उसपे दोष कुछ मढ़ना भी होगा

जो देखा फ्रेम तो मन में ये आया
कभी इस फ्रेम में टँगना भी होगा

इसी का है नाम शायद ज़िंदगी
खोया कुछ तो कुछ पाया भी होगा


Image : Autumn thoughts
Image Source : WikiArt
Artist : Arnold Böcklin
Image in Public Domain

ममता किरण द्वारा भी