गिरने की आवाज़
शेयर करे close
Share on facebook
Share on twitter
Share on reddit
Share on tumblr
Share on linkedin
शेयर करे close
Share on facebook
Share on twitter
Share on reddit
Share on tumblr
Share on linkedin

शेयर करे close
Share on facebook
Share on twitter
Share on tumblr
Share on linkedin
Share on whatsapp
https://nayidhara.in/kavya-dhara/hindi-poem-about-girne-ki-awaz-by-shankarananda/
- 1 April, 2025
गिरने की आवाज़
इस पृथ्वी पर जो कुछ होता है
उसके होने के निशान भी छूट ही जाते हैं
उसके विदा होने के बाद
जैसे दीवार से गिर जाती है तस्वीर
कील वहीं गड़ी रहती है उदास
जैसे काटे गए पेड़ की जगह का ख़ालीपन
एक दिन पूरी कहानी कह देता है
पेड़ के बड़े होने और पत्तों से भरने की
फूलने और फलने की तमाम तस्वीरें
बीते दिनों की
एकाएक कौंध जाती है
जो पेड़ काटता है
वह आख़िर क्या सोचता है कि
इतना मगन होता है जड़ काटते हुए
उसके गुनगुनाने की आवाज़ सुनकर
डर जाता हूँ मैं
कैसे कोई हरे-भरे पेड़ को काटने का
काम भी, इतने मज़े से कर सकता है
फिर मुझे लगता है कि
यह जो पेड़ काट रहा है मज़े में
कोई इसकी भी जड़
इतनी ही सावधानी से काट रहा है
गिरने की आवाज़ का गूँजना
अभी बाक़ी है।