दादा का लगाया नींबू पेड़

दादा का लगाया नींबू पेड़

कहीं दूर से किसी गाँव के
अपने एक आत्मीय से
माँग लाए थे दादा नींबू पौध
और लगाया था उसे अपनी बाड़ी में

दुख की घड़ी में
एक टुकड़ा साथ क्या माँगा
इस नींबू माँगकर बीमार दादी के लिए
पड़ोसी नकछेदी साव को लगा था कि
दादा ने जान ही माँग ली उसकी
जबकि नकछेदी के साँवरे बदन पर
लकदक साफ शफाक धोती कुर्ता
जो शोभायमान देख रहे हैं आप
उसकी बरबस आँख खींचती सफाई
दादा के कारीगर हाथों की
करामात ही तो है।

गाँव-जवार सभा-समाज
दोस-कुटुम भोज-भात
हर कहीं नकछेदी के धोती-कुर्ते पर
सम्मोहित आँखें जो टँगी होती हैं
पूछने पर दादा के
हुनरमंद हाथों का बखान
झख मारकर उसे करना ही पड़ता है

दादा ने यह नींबू पौध नहीं लगाया
गोया लगाया अपने ठेस लगे दिल को
सहलाता एक अहं अवलंब
अपने खट्टे अनुभवों को
देता एक प्रतीक

अब दादा की दुनियावी गैरमौजूदगी में
उनका यह अवलंब तब्दील हो गया है
एक अस्मिता स्मृति वृक्ष में
और नया अवलंब नये घर की
नींव डालने के क्रम में
है अभिशप्त यह समूल
अस्तित्वविहीन हो जाने को

अगर दादा मौजूद होते
इस दुनिया में
तो अपने उत्तराधिकारियों से
जरूर पूछते
कि किसी पुरा प्रतिगामी थाती की
छाती पर चढ़
नव सोच नई विरासत
रचने करने का माद्दा
तुममें क्यों नहीं आया?


Image : Under the Lemon Trees
Image Source : WikiArt
Artist : Claude Monet
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मुसाफिर बैठा द्वारा भी