हलधर जाग गया है

हलधर जाग गया है

हलधर जाग गया है
हाँ, हलधर जाग गया है
शुभद्र घर-आँगन बुहारकर
हाथ में झाड़ू लेकर
अपनी सखियों और पड़ोसियों
को लेकर जुम गई हैं
कांधा भी जंग लगा सुदर्शन को
साफ कर रहा है
वह जो साहुकार का बेटा है न!
दिन दहाड़े डंडी मार रहा है।
सब अनाज बाइसे पसेरी कहता है
डंडी उटंगे रखकर तौलता है
वह बनिया का बेटा जो है न!
एक नंबर का दंडीमार है
जनता के धन धरती
दूसरे साहुकार के बेटों के हाथ
औने-पौने दाम बेच रहा है
और कह रहा है जनता-जनार्दन
की भलाई कर रहा है
दिनादिसती आँखों में धूल झोंक रहा है
ऐसा क्यों न करे भला!
चुनाव में साहुकार का बेटा
साहुकारों से चंदा बटोरता है
और चुनाव लड़ता है
पैसा फेंककर चुनाव जीत जाता है
जनता को लॉलीपाप दिखाकर
मुखिया बन जाता है
प्रधान बन जाता है
हलधरों ने इसकी चालाकी ताड़ ली है
तभी न इस कड़ाके की ठंड में तंबु गाड़कर
शमियाना तानकर घेराबंदी कर रहा है
और नौ-छौ करने के लिए बाल-वृद्ध
वनिता कमर कस लिया है
हाँ, सबने कमर कस लिया है।


Image : Peasant with a bridle
Image Source : WikiArt
Artist : Ivan Kramskoy
Image in Public Domain

बाबूलाल मधुकर द्वारा भी