कैसे बचाऊँगा अपना प्रेम

कैसे बचाऊँगा अपना प्रेम

स्टील का दरवाज़ा
गोलियों से छलनी हुआ कराहता है
और ठीक सामने,
तुम चाँदनी में नहाए, आँखों में आँसू लिए देखती हो

हर रात एक अलविदा कहती है
हर दिन एक निरंतर परहेज में तब्दील हुआ जाता है
क्या यह आख़िरी बार होगा
जब मैं तुम्हारे देह में लिपटी स्निग्धता को महसूस कर रहा हूँ
और तुम्हारे स्पर्श की कस्तूरी में डूब रहा हूँ

देखो ना
जिस शहर को हमने चुना था
वो धीरे-धीरे बमबारी का विकृत कैनवास बन चुका है,
जहाँ उम्मीद मोमबत्ती की तरह चमकती है
और हमारी-तुम्हारी लड़ाई कहीं
बारूदों के आसमान में गौरैया सी खो गई है,

तुम्हारी गर्दन पर मेरे अधरों का चुम्बन
अपनी छाप छोड़ने के लिए संघर्ष कर रहा है
मेरी उँगलियों पर तुम्हारे प्यार के निशान हैं
लेकिन मेरी समूची देह सत्ता के लिए
युद्ध का नक्शा घोषित की जा चुकी है

और इन सब के बीच
तुम्हारी आँखें मेरी स्मृतियों का जंगल है
जिसमें मैं आज भी महुए सा खिलने को मचलता हूँ,
मैं घोर हताशा में
तुम्हारे कांधे का तिल चूमना चाहता हूँ
मैं अनदेखा कर देना चाहता हूँ
पुलिस की सायरन को, हमारी तरफ़ आते कटीले तारों को,

मैं जीना चाहता हूँ
एक क्षणभंगुर राहत,
मैं तुम्हें छू कर एक उन्मादी,
पागल-प्रेमी में बदल जाना चाहता हूँ
मैं टाल देना चाहता हूँ
दुनिया का अनकहा आतंक,

मैं जानता हूँ
आकाश धूसर हो रहा है,
नदियाँ सूख रही हैं
शहरों के बढ़ते नाख़ून से,
मेरे कानों में सैलाब की तरह पड़ते विदा-गीत
मुझे हर क्षण ख़त्म कर रहे हैं

पर फिर भी,
मैं कबूल करता हूँ, प्रिये,
मैं तुम्हारी प्रतीक्षा करूँगा
हम मिलेंगे किसी दिन,
जहाँ नदी का किनारा होगा
जहाँ तुम अप्रैल की महकती धूप में, गुलमोहर सी मिलोगी
जहाँ प्रेम की अफवाह, युद्ध के सच से
बहुत ताक़तवर होगी।


आलोक आज़ाद द्वारा भी