काव्य शिशु

काव्य शिशु

एक बच्चा घुटनों के बल चलता
खड़ा होने की कोशिश में
बार-बार गिरता
बार-बार उठता
लोग तालियाँ बजाते हैं
उसे उँगली पकड़ चलना सिखाते हैं
कुछ लोग देने को अच्छे संस्कार
उसे ‘बालोहं जगदानंद…’ रटाते हैं।

फिर कविगुरु आते हैं
कहते हैं–
यह बच्चा काव्य-शिशु है
इसे हम अपनी कविता की
पाठशाला में पढ़ाएँगे
कविता सिखाएँगे

घर वाले सुनकर होते हैं हैरान
कहते हैं
बड़े भाई की तरह क्या इसे भी
नालायक बनाएँगे

बच्चा जिद ठानता है
उनलोगों के पीछे लग जाता है
और उनकी पाठशाला पहुँच जाता है
वह ककहरा के बदले
तुकबंदियाँ सीखने लगता है
और दर्जनों अन्य काव्यार्थियों की तरह
कविता लिखने लगता है
एक दिन वह सचमुच का
नकारा कवि बन जाता है

लेकिन
अपने सत्तरसाला काव्य शिशु को देखकर
उसके व्योवृद्ध गुरु खुश होते हैं
आह्लाद प्रकट करते हैं
उसके माथे पर आशीर्वादी हाथ फेरकर!


Image: Figure in Bengali book Shakuntala
Source: Wikimedia Commons
Artist: Abanindranath Tagore
Image in Public Domain