कितने अकेले

कितने अकेले

आज से पहले
हम नहीं थे कभी
इतने अकेले
जंगलों और
कंदराओं में भी नहीं
वहाँ भी हम साथ-साथ रहते थे
करते थे साथ-साथ शिकार
साथ-साथ झेलते थे
शीत और धूप की मार
यह ठीक है कि तब
हमारा नहीं था कोई
निश्चित स्थान
हमारी पहचान
किसी देश के
नागरिक की नहीं थी
हम पूरी धरती के नागरिक थे
हम नदी, पहाड़, झरना, पेड़
पशु-पक्षी, बादल, समुद्र
और हवा से करते थे बातें
तब हमारे पास
ऐसी कोई भाषा नहीं थी
जिसका अपना व्याकरण हो
फिर भी उसी भाषा में
हम जो बोलते थे
वह किसी महाकाव्य से
कम नहीं था
बल्कि दुनिया के
सारे महाकाव्य
वहीं से निकले

बेशक शुरू में हम
रहे होंगे अकेले
मगर धीरे-धीरे
बनता गया हमारा समाज
तब हमारी संख्या बहुत थोड़ी थी
हमारी कुछ संततियाँ
धूप और शीत की
झेल नहीं पाईं मार
तो कुछ हो गईं
हिंस्र पशुओं का आहार
मेरे भीतर का हाहाकार
तब कौन सुनने वाला था
फिर भी जीवन की जंग से
हम कभी हार नहीं माने
तभी हमारे जीवन में
एक बड़ी घटना घटी
हमने देखा
कि जंगल में आग लगी है
जिसके डर से
भागने लगे हिंस्र पशु
उनमें कुछ हो गए
आग के शिकार
जो बने हमारे आहार
पशुओं का पका हुआ
मांस खाते हुए
हमने पहली बार जाना कि
कच्चे मांस की बनिस्बत
सुस्वादु होता है पका हुआ मांस
तब हमें लगा
कि आग से दोस्ती कर
हम बचा सकते हैं
अपनी संततियों को
उसके बाद जंगलों और
कंदराओं से निकलकर
हम मैदान में आए

जिस व्यक्ति ने मैदान में
सबसे पहले आग को
जीवित रखने की कला सीखी

यह हमारे प्रजापति कहलाए
आग पर उनका अधिकार था
हम सभी स्त्री-पुरुष
उनके बनाए अग्निकुंड के
आसपास रहने लगे
और प्रेम करते हुए
एक-दूसरे को गहने लगे
वह हमारे बच्चों का
जन्म स्थल बन गया
वहाँ हिंस्र पशु आने से डरने लगे
जिससे हमारे बच्चे
अब कम मरने लगे
मगर कौन किसका पिता है
जब यह पता नहीं चला
तो हम सभी
प्रजापति की संतान कहलाए
हम आज जो कुछ भी हैं
सभी वहीं से आए
अब हमारी संख्या
तेजी से बढ़ने लगी
होने लगा बचाव
हिंस्र पशुओं और शीत से
इस निश्चिंतता के बाद
परिचय हुआ था गीत से
जो हमारे भीतर से
अनायास से निकले थे
जिस अग्नि ने हमारे जीवन से
दूर किए अँधेरे
आज भी उसकी स्मृति में
हम लगाते हैं सात फेरे
उसकी रोशनी में हमने
अँधेरे की चुनौती स्वीकार की
उसकी उष्मा ने हमें
नई ऊर्जा से भर दिया
उस समय हमारा संघर्ष
केवल भूख के खिलाफ था
धन संचय के लिए नहीं
धीरे-धीरे हम नदियों की ओर आए
और नागरिक कहलाए
उस समय हमारे पास
कोई धर्म नहीं था
हम उसका अर्थ भी नहीं जानते थे
फिर भी एक-दूसरे से
प्रेम करते थे
हमने इस धरती
और नदियों को
माँ मान लिया था
इनके साथ रहते हुए
बीत गई सदियाँ
आज भी हमारी धमनियों में
बह रही हैं वे नदियाँ
जिनके किनारे हमने
सभ्यताएँ निर्मित कीं
मगर उन सभ्यताओं के साथ-साथ
हमने कुछ असभ्यताएँ भी पैदा कीं
उन्हीं असभ्यताओं में पैदा हुए
जाति और धर्म
जाति के कर्म सिद्धांत से हमें
इस तरह जकड़ दिया गया
कि उससे निकलने की बात
हम सोच भी नहीं सकते थे
जाति बदलना
धर्म बदलने से भी
अधिक कठिन हो गया
मगर लड़कियों के साथ
ऐसी बात नहीं थी
वे जिस जाति और धर्म में गईं
उसी की हो गईं

गोया वे मनुष्य न होकर
कोई वस्तु हों
जिन्हें पिता दान में दे देता
और गर्व से कहता
उसने कन्यादान किया है

पुरुष अपनी सुविधा अनुसार
नियम बनाते रहे
उनके बनाए नियमों पर
स्त्रियों को चलना पड़ा
कहीं देवदासी बन कर रहना पड़ा
तो कहीं पति की चिता पर
जीवित ही जलना पड़ा
स्त्रियों के पक्ष में कोई भी धर्म नहीं था
फिर भी सबसे ज्यादा धार्मिक
स्त्रियाँ होने लगीं
सारे व्रत उन्हीं के हिस्से में आए
उनके लिए चूल्हे की
चहारदीवारी से लेकर
बाहर तक धुआँ ही धुआँ छाए
इस व्यवस्था से समाज का प्रवाह
अचानक रुक गया
जाति और धर्म के आगे
मनुष्य झुक गया
मानो बराबरी की नदी को
किसी ने बाँध दिया हो
जो कभी नहीं जाती
वह जाति हो गई
और धर्म का तो कहना ही क्या
देखते ही देखते धर्म
जान से भी अधिक मूल्यवान हो गया
जिसकी रक्षा के लिए हमने
जुटाए हथियार
जहाँ जरूरत की चीजें भी
नहीं पहुँच पाईं
वहाँ भी पहुँच गए
हमारे जहरीले विचार
जिस जाति और धर्म को
हमने ही पैदा किए
वही हमारे लिए भस्मासुर बन गया
हम उनके ही हो गए गुलाम
ईश्वर को भी बाँट दिया हमने
कोई अल्लाह हो गया तो कोई राम
और हम उसके नाम पर
एक-दूसरे का सिर
कलम करने लगे
दुनिया के महायुद्धों में भी
उतने लोग नहीं मारे गए
जितने धर्म और जाति के
नाम पर मरने लगे

अब जब हम पीछे मुड़कर देखते हैं
तो सिर शर्म से झुक जाता है
कि इतनी लंबी यात्रा
तय करने के बावजूद
अभी तक हम
वहाँ भी नहीं पहुँच पाए
कि एक-दूसरे को छू सकें
एक अदृश्य कोरोना ने
मनुष्य जाति के अस्तित्व को
संकट में डाल दिया
जिसे क्रूर पूँजीवाद भी
नष्ट नहीं कर सका
उस सामूहिकता को
इसने नष्ट कर दिया
हमारी सारी वैज्ञानिक उपलब्धियाँ
धरी की धरी रह गईं
और तुर्रा यह कि इस धरती को
अनेक बार नष्ट करने की क्षमता
हमने अर्जित कर ली है
जबकि आज तक हम एक भी
मरे हुए प्राणी को जीवित नहीं कर सके
विज्ञान का यह अहंकार
प्रकृति ने कर दिया तार-तार
हमने प्रेम करना छोड़ दिया
और प्रकृति से लड़ना शुरू किया
जिस नदी से हमें जीवन मिला
हमने उस नदी को ही मार दिया
जिस हवा से प्राण वायु मिली
उसे भी हमने दूषित किया
जंगलों को काट कर
पशुओं का उजाड़ दिया आशियाना
वन्यजीवों को उजाड़ कर
बनाने लगे अपना-अपना ठिकाना
हमने यह भी नहीं सोचा
कि अग्नि का हम पर
कितना उपकार है
चूल्हे की आग बुझा कर
लोगों के घर जलाने लगे
हमें आग के साथ जाना कहाँ था
और जाने कहाँ लगे
प्रकृति से जुड़कर ही हम
जीवन की जंग जीत सकते हैं
मगर हमने ऐसा नहीं किया
और कुछ चालाक लोगों के
बहकावे में आ गए
जिसने हमें बताया
कि व्यक्ति की स्वायत्तता
समूह नष्ट कर देता है
उसने हमें स्वार्थी बनना सिखाया
उसके इस मोहक जाल में फँस कर
हम लगातार समूह से
कटते चले गए
उस चालाक व्यक्ति ने
इसे अवसर की तरह लिया
और जाति-धर्म के नाम पर
हमें पूरी तरह तोड़ दिया
उसने हमारे दुख को भी
बाँट कर देखना शुरू किया
उसे जब लगा कि
हम पूरी तरह बँट चुके हैं
तो उसने हमें खरीदना शुरू किया
और हम बिकते चले गए

हमारा सपना भी
अब वही देखने लगा
अब सपने भी हमारे नहीं थे
हम उसके सपनों के हो गए
धीरे-धीरे हम बिकने के
इतने आदी हो गए कि
उसकी नजरों में
आदमी न होकर
सोना-चाँदी हो गए
जिसे गला कर
वह हमें जैसा चाहे ढाल सकता है
हम सूरज की तरह ढलने लगे
और बर्फ की तरह गलने लगे
हमारी परीक्षा लेने के लिए
उसने हमें सीता की तरह
आग में झोंक दिया
और हम उसकी
जय-जयकार करते हुए जलने लगे
जिसने ऐसा नहीं किया
वह देशद्रोही कहलाया
कोरोना की सवारी कर
वह हमें मारने आया
उसे पता चल गया
कि बिका हुआ आदमी
कुछ सोच नहीं सकता
हम बिना सोचे ही
कुछ भी करने को तैयार हो गए
हम उसके स्वार्थ,
पूँजी और धारणा के शिकार हो गए
हमें भूख से मरने के लिए
सड़कों पर छोड़ दिया गया
हम कहाँ जा रहे थे कुछ पता नहीं
फिर भी चले जा रहे थे
हम गाँव से भगाए गए
शहर से भगाए गए
अपने ही मुलुक में भूत की तरह
भागे जा रहे हैं
गोया यह अपना मुलुक न होकर
एक विस्तृत मैदान हो
जहाँ भूखे-प्यासे भागने के लिए
घोड़े की तरह हमें छोड़
दिया गया हो

उनकी नजरों में हम जीवित हैं न जहीन हैं
बल्कि एक ऐसी मशीन हैं
जिसकी चाबी दूसरे के हाथ में है
फिर भी वह हमसे डरा हुआ है
और डरा हुआ आदमी ही
दूसरों को डराता है
डराने के लिए वह करता है
रोज नया-नया खेला
उसे डर है कि हम फिर से
सोचने न लग जाएँ
कि व्यक्ति से समूह में आए
और अब समूह से हमें
किसने कर दिया अकेला?


Image : Man_s Head
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Artist : Henri de Toulouse-Lautrec
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