अब हंसने और हँसाने का

अब हंसने और हँसाने का

अब हँसने और हँसाने का
कोई पर्व-त्योहार क्यों नहीं होता
हर आदमी बदहवास होकर
न जागता है न सोता है
कई बार टिकट कटाकर
सिर्फ हँसने-हँसाने के लिए
ट्रेन पर चढ़-चढ़कर
उतरता गया हूँ
क्योंकि खोपिया ने
सूचित किया है
डिब्बे में विस्फोटक बम है
हँसने और हँसाने के लिए
यही क्या कम है!


Image : The Laughing Violinist
Image Source : WikiArt
Artist : Gerard van Honthorst
Image in Public Domain

बाबूलाल मधुकर द्वारा भी