ओम शांति

ओम शांति

बचपन से सुनता आ रहा था।
बहुत परिचित था, इसलिए आसान भी।
खोजने लगा था शांति
अशांत होते ही।

सबसे करीब दिखा मुझे, ओम शांति।
थक गया था बार-बार झाड़कर,
टटोलकर
जाने कहाँ छिपी बैठी थी शांति।

जितने भी जानता था पर्यायवाची
सबमें देखा, ढूँढ़ा
पर हाथ खाली थे।

यहाँ तक कि उलटा-पुलटा
और दूसरी अँग्रेजी, किया
जानकारी में बसी भाषाओं को भी,
पर नहीं मिली वह कहीं भी।

और देखिए, मिली भी तो वह कहाँ मिली, शैतान की नानी
लुका-छिपी के खेल-सी
झाँकती-दुबकती!

शान से छिपी बैठी थी वह
भूख को पछाड़ते
एक रोटी के टुकड़े में,
उसे निहारती आँखों में उमड़ते
उम्मीद के सागर में!

मैंने बढ़ाए कदम
बहुत हौले, करने को धप्पा,
वह दौड़ पड़ी चंचल बच्ची-सी मुग्ध
हँसती, देती चुनौती।

और जाकर रुकी
गले मिल रहे उन तमाम बच्चों की
हसरतों में जो थे, तो महज बच्चे थे,
न धर्म थे, न वर्ण
न दोस्त थे, न दुश्मन
नहीं थे वे कोई राजनीति भी
थे, तो महज बच्चे थे,
इतने मासूम, इतने नासमझ
कि जिन्हें अभी नहीं आया था
आपस में लड़ना तक,
युद्ध तो अभी कोश तक में नहीं था।

कोशिश फिर की थी, पहुँचने को पास।
वह फिर फुदकी, सफेद कबूतर-सी,
और फुदक कर
जा बैठी उस मुँड़ेर पर जहाँ बाँटने की
कोशिश में लगे थे कुछ शासक
पृथ्वी को
और दबोचे खड़ी थीं उनकी गर्दनें
असंख्य कविताएँ
ब्रह्मांड की।

कितना खुश था मैं!
अब सही राह पर था मैं–
नहीं छिप पाएगी शांति
लुक जाए कहीं भी।


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Artist : Joseph Wright
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