हमारे कृषक

हमारे कृषक

जेठ हो कि हो पूस, हमारे कृषकों को आराम नहीं है
छूटे कभी संग बैलों का, ऐसा कोई याम नहीं है
मुख में जीभ शक्ति भुजा में जीवन में सुख का नाम नहीं है
वसन कहाँ, सूखी रोटी भी मिलती दोनों शाम नहीं है

बैलों के ये बंधु वर्ष भर क्या जाने कैसे जीते हैं
बंधी जीभ, आँखें विषम, गम खा शायद आँसू पीते हैं
पर शिशु का क्या, सीख न पाया अभी जो आँसू पीना
चूस चूस सूखा स्तन माँ का, सो जाता रो-विलप नगीना

विवश देखती माँ आँचल से नन्हीं तड़प उड़ जाती
अपना रक्त पिला देती यदि फटती आज वज्र की छाती
कब्र कब्र में अबोध बालकों की भूखी हड्डी रोती है
दूध-दूध की कदम-कदम पर सारी रात रोती है
दूध-दूध ओ वत्स मंदिरों में बहरे पाषाण यहाँ हैं
दूध-दूध तारे बोलो इन बच्चों के भगवान कहाँ हैं

दूध-दूध गंगा तू ही अपनी पानी को दूध बना दे
दूध-दूध उफ् कोई है तो इन भूखे मुर्दों को जरा मना दे
दूध-दूध दुनिया सोती है लाऊँ दूध कहाँ से किस घर से
दूध-दूध हे देव गगन के कुछ बूँदें टपका अंबर से

हटो व्योम के मेघ पंथ से स्वर्ग लूटने हम आते हैं
दूध-दूध हे वत्स! तुम्हारा दूध खोजने हम जाते हैं।


Image : Farmer to work
Image Source : WikiArt
Artist : Georges Seurat
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