हमारे बीच का अभिमानी
- 1 August, 2016
शेयर करे close
Share on facebook
Share on twitter
Share on reddit
Share on tumblr
Share on linkedin
शेयर करे close
Share on facebook
Share on twitter
Share on reddit
Share on tumblr
Share on linkedin
शेयर करे close
Share on facebook
Share on twitter
Share on tumblr
Share on linkedin
Share on whatsapp
https://nayidhara.in/kavya-dhara/hindi-poem-about-prideful-among-us-by-manazir-ashiq-harganvi/
- 1 August, 2016
हमारे बीच का अभिमानी
मैं जानता हूँ
उस आदमी को
मनुष्य को
और अभिमानी को
सदियों से!
उसके हाथ में
तलवार या हथियार
या कंधे पर जाल
नहीं होता था
उसे गेहूँ से था प्यार
और दीवारों से
महासागरों से भी
इसलिए कि उसमें फल आएँ
उसमें द्वार खुलें!
हम जानते हैं
कितनी ही दीवारें
तहस नहस हो गईं
कितने ही शहर
राख बनकर मुट्ठी में भर गए
और कितनी ही पोशाकें
धूल में अट गईं
इन पोशाकों से
राजनीति भी की गई
धमाके के बाद
लेकिन–
वह आदमी
वह सदाचारी
सदियों पहले का अभिमानी
आज भी हम सब के बीच
जिंदा है,
धरती, कोयला और सागर की वर्दी में
वह संयमी
दूसरों से भिन्न नहीं
या बिल्कुल दूसरे
जो वह खुद ही था
बिना विरासत का
बिना ढोर-बैलों का
बिना शस्त्र कवच का
वह आदमी आज कौन है
मैं? तुम? वह?!
Image : Landscape with brother s figure
Image Source : WikiArt
Artist : Vasily Surikov
Image in Public Domain