रात में बदली तस्वीर

रात में बदली तस्वीर

विस्मृत होने के लिए
न जाने कितनी चीज़ें अभिशप्त हैं
फिर भी रोज़ कुछ नया घटता है
रोज़ सूखती है मन की टहनी और
फिर नमी सोख कर हो जाती है
ताजी-हरी, दो दिन बाद

एक-एक पल जो लगता है
साँस की तरह ज़रूरी
कुछ ही दिनों में उसकी याद
धुँधली पड़ जाती है धब्बे में बदल
जैसे सालभर पहले की भादों वाली रात
या पिछली बारिश में जूतों में
पानी फैलने की ठंड
कुछ याद नहीं इस बीहड़ में

कबाड़ जितनी जगह शेष बचती है अंत में
सब कुछ वैसा ही उलझा हुआ
एक में गुँथा दूसरा तीसरे से उलझा हुआ

जिसके एक स्पर्श से काँप गया था बुख़ार
पिछली बार
तस्वीर जो बच गई उस चेहरे की आँखों में
वह भी धुँधली पड़ती हुई एक दिन
रात में बदल जाती है
फिर भी नहीं छूटता जीना।