रहिमन पानी राखिये

रहिमन पानी राखिये

‘रहिमन पानी राखिये
बिन पानी सब सून’
कभी कहा था रहीम बाबा ने
फिर भी पानी को बेपानी
किया गया बेहिसाब

सबसे पहले बेपानी हुआ
मोती मानुष चून का पानी
दुःख के अंधकार में
आँखें मूँदे रहीम बाबा
देखते रहे, कुछ ना बोले

बोलने वाले असंख्य थे
जो बोले ‘क्या बचाना पानी को
तीन भाग धरती
पानी में ही तो डूबी है
धरती के ऊपर भी पानी
धरती के नीचे भी पानी
बेमानी बेनूर था पानी
हमने लिखी नई कहानी
मुदित हुआ धरती का पानी’

गहरे संताप में डूबे
रहीम बाबा उत्सवी शोकगीत
सुनते रहे, कुछ ना बोले
पानी की गौरव यात्रा में
मगरमच्छों की प्यास को तौलता
अरबो खरब पानी
बंद हुआ बोतलों में
बोतल बंद पानी पहुँचा

कबीर के बाजार में
कबीर की लुकाठी
उसे देख बुझ गई
कीचड़ सनी नदी रेत रेत हो गई
अपनी आँखों में
पूरी धरती का नमक लिए
रहीम बाबा देखते रहे
कुछ ना बोले

एक भाषा बेपानी होकर मर गई
एक प्यास पखेरुओं की
हवा में तैरती रही
एक साँस धरा के
कंठ में अटक गई
मछली की फटी फटी आँखों को देखते
रहीम बाबा भीतर तक दरक गए
कुछ ना बोले

बोलने वाले असंख्य थे
जो बोले
‘रहिमन पानी राखिये
बोतल में सिल लगाये
नदी नज्म बन जावेगी
मदिरा-सी उफनाये’


Image : Stream by a Forest Slope
Image Source : WikiArt
Artist : Ivan Shishkin
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