ख़ारिज

ख़ारिज

बह रहे हैं शव काल के प्रवाह में

इतने लोग मर रहे हैं
कि नमन श्रद्धांजलि दुआ
सबके सच्चे मायने खो गए

लगता है अपने आँसू
और दूसरों के आँसुओं को
ओढ़कर बैठी-बैठी

मैं नमक का ढूह बन गई हूँ

आँसुओं के इस ढूह के अंदर
एक दिन मैं भी गलकर मर जाऊँगी

मगर मेरा मर जाना इस विकट समय में
एक मामूली और महत्वहीन
घटना की तरह दर्ज किया जाएगा

यह सच है मैंने किसी को
अस्पताल नहीं पहुँचाया
ऑक्सीजन नहीं पहुँचाया
खाने-पीने का सामान नहीं पहुँचाया

ऐसे ख़ंजर होते समय में
मैंने सिर्फ़ कविताएँ लिखीं

मुझे जिनकी जानें जा रही थीं
उनके निकट होना चाहिए था
उनके किसी अपने की तरह

मेरी कविताओं ने भी कहाँ साथ दिया
किसी के दु:साध्य दिनों में

आज मैं ख़ुद को कवि कहे जाने से
ख़ारिज करती हूँ।


Image : Portrait of Harriet Husson Carville
Image Source : WikiArt
Artist : Thomas Eakins
Image in Public Domain