सहयात्रा के पचहत्तर वर्ष

सहयात्रा के पचहत्तर वर्ष

साथ-साथ चलते पचहत्तर बरस सरस बीते
एक हाथ में थी कविता, दूजे में थी रोटी
हम तानते रहे दोनों की लय छोटी-छोटी
चलते रहे समर में हम यों ही खाते-पीते

जब आया जलजला पाँव काँपने लगे डर से
बढ़ कर थाम लिया हमने इक दूजे को कर से
कितना कुछ टूटा-फूटा पर हम न कभी रीते

छोटे-छोटे सुख-पंछी फड़काते थे पाँखें
छोटे-छोटे सपनों से भर आती थीं आँखें
गिर पड़े कुछ हारे से भी पर आखिर जीते

खुद के गिरने पर उठकर तुम
कितना हँसती थी
पर मेरी छोटी सी डगमग तुमको डँसती थी
भर जाते थे जीवन-मधु से पल विष से तीते

जब जब हुआ दूर घर से तनहा हो घबराया
तब-तब लगा मुझे कोई स्वर तुम जैसा आया
‘घबराना मत तनहाई से मैं तो हूँ मीते!’


Image : briar 1955
Image Source : WikiArt
Artist : Qi Baishi
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रामदरश मिश्र द्वारा भी